Wednesday, November 30, 2011

डॉ.राजश्री रावत















भूतपूर्व अध्यक्ष
हिंदी लेखिका संघ
मध्यप्रदेश , भोपाल

अधरों पर ख़ामोशी 

अधरों पर ख़ामोशी लेकर 
मन का गीत सुना दो तुम !
मौन समर्पण आखों से दो तुम
नैनों से मुस्का दो तुम !

कम्पित कर में हृदय कटोरा
अक्षयपात्र लिए हो तुम !
अश्रुकणों से जल अर्पण कर
चरण धुलाने आये तुम !
अधरों आशा प्रेमदान की
पल-पल रटन लगा दो तुम !
मौन समर्पण आखों से दो तुम
नैनों से मुस्का दो तुम !

कलियों ने निज पंखुरी खोली
मन में करें हंसी-ठिठोली 
मन की बगिया ऐसी डोली 
खाली हुई हृदय की झोली 
मन का आंगन अब चमक उठे 
पलकों पर दीप जला दो तुम !
मौन समर्पण आखों से दो तुम
नैनों से मुस्का दो तुम !

पल दो पल की बात नहीं है 
ये कोई सौगात नहीं है 
सारा जीवन ही पूजा है 
झूठी सच्ची बात नहीं है 
विष भी अमृत हो जायेगा 
मीरा सी लगन लो तुम !
मौन समर्पण आखों से दो तुम
नैनों से मुस्का दो तुम !







1 comment:

  1. मन का आंगन अब चमक उठे
    पलकों पर दीप जला दो तुम !
    मौन समर्पण आखों से दो तुम
    नैनों से मुस्का दो तुम !
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

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