Wednesday, November 30, 2011

डॉ.सुशीला कपूर














डॉ.सुशीला कपूर 
संस्थापक 
हिंदी लेखिका संघ , मध्यप्रदेश , भोपाल




यों ही 

यों ही संशय सदा तुम किया न करो 
स्नेह गौरव सदा को सुखा जायेगा 
रूप अंकित तुम्हारा हृदय बिम्ब में 
विश्वासों के जल से निखारो , सखे
यों ही संशय -शिखा जो दिखाते रहे 
स्नेह - दर्पण दरारा तो हो जायेगा !

स्नेह - तागा बटा चाह के तन्तु से 
विश्वासों का मांझा , लगन रंग से
शंका - चरखी पर यों तानते जो रहे
शत - खंडों में टूटा न जुड़ पायेगा !

प्रेम - प्रतिज्ञा पुजे त्याग के पाप से
औ' पुजापे में सर्वस्व  चढ़ाना पड़े
यों ही शंका की छेनी चलते रहे 
विश्वासों का मन्दिर ही ढह जायेगा 

स्नेह - कोल सरस पदम तन्तु प्रिये
बंधना मन-मतंग सहज न सखे 
यों ही संशय - सुरा जो चढाते रहे 
स्नेह का संतुलन ही बिगड़ जायेगा !

विश्वासों की यमुना पुलिन पर प्रिये
संगमरमरी - चाहों गढ़ा ताज ये 
यों ही संशय प्रदूषण फैलाते रहे 
स्नेह का ताज बदरंग हो जायेगा !

मन - चकोरा रमा भूल दूरी प्रिये
चाहत-चांदनी में अंगारे चुगे 
यों अकारण उपेक्षा दिखाते रहे
प्रेम - कुकनू सदा को ही जल जायेगा ! ( नर - नारायणी से साभार )

1 comment:

  1. आदरणीय डॉ सुशीला जी के सतत प्रयास का परिणाम है कि मध्यप्रदेश की लेखिकाएं आज सभी विधाओं में इतना अच्छा साहित्यिक योगदान दे रही हैं ! मैं स्वागत करती हूँ समस्त लेखिकाओं का और उम्मीद करती हूँ कि सर्जना रुपी दीपक की यह लौ निरंतर जलती रहेगी और सबको रास्ता दिखाती रहेगी ! हिंदी लेखिका संघ का ब्लोगर्स की दुनिया में स्वागत है !

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