Tuesday, November 15, 2011

आशा शर्मा















भूतपूर्व अध्यक्ष
हिंदी लेखिका संघ
मध्यप्रदेश , भोपाल






गुजरती है रात मैं कहती खुदा का शुक्र है
उनके आने का समय पहले से कुछ कम तो हुआ !

हर घड़ी बीती घड़ी से दर्द ज्यादा दे रही
जो अभी आई नहीं उसका अभी से गम हुआ !

सह रही हूँ चोट मैं चुपचाप पत्थर सी बनी
जानती हूँ आके धीमे से कहोगे क्या हुआ ?

आँख में आंसूं कहाँ यह आपका ही हुक्म है
किन्तु दिल कमबख्त जाने है कहाँ डूबा हुआ ?

क्या तुम्हें आवाज यह गम की सुनाई दी नहीं ?
हो जहाँ भी थाम लो आकर बनो कुछ मेहरबां !

1 comment:

  1. आँख में आंसूं कहाँ यह आपका ही हुक्म है
    किन्तु दिल कमबख्त जाने है कहाँ डूबा हुआ ?
    क्या बात है...बेहद खूबसूरत रचना

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