भूतपूर्व अध्यक्ष
हिंदी लेखिका संघ
मध्यप्रदेश , भोपाल
गुजरती है रात मैं कहती खुदा का शुक्र है
उनके आने का समय पहले से कुछ कम तो हुआ !
हर घड़ी बीती घड़ी से दर्द ज्यादा दे रही
जो अभी आई नहीं उसका अभी से गम हुआ !
सह रही हूँ चोट मैं चुपचाप पत्थर सी बनी
जानती हूँ आके धीमे से कहोगे क्या हुआ ?
आँख में आंसूं कहाँ यह आपका ही हुक्म है
किन्तु दिल कमबख्त जाने है कहाँ डूबा हुआ ?
क्या तुम्हें आवाज यह गम की सुनाई दी नहीं ?
हो जहाँ भी थाम लो आकर बनो कुछ मेहरबां !
आँख में आंसूं कहाँ यह आपका ही हुक्म है
ReplyDeleteकिन्तु दिल कमबख्त जाने है कहाँ डूबा हुआ ?
क्या बात है...बेहद खूबसूरत रचना