Monday, November 28, 2011

आशा श्रीवास्तव





जाने क्यों याद आता है


अम्बर पर घिरती सघन घन घटाएं
घनों के घोर से कंपकंपाती ये हवाएं
विकल होता है ये मन
दामिनी की दमक से उजला ये बदन
जाने क्यों याद आता है !

खिले हुए पुष्प पर मंडराता भंवरा
चिड़ियों का छोटा सा आशियाना
किनारों को छूकर लहरों का आना
जलते दिए की लौ  का उठाना
जाने क्यों याद आता है

सूनी मुंडेरों पर उदासी का साया
विरह मन की वेदना
उलझ कर हाथों की हथेलियाँ
बालों का सुलझाना
जाने क्यों याद आता है


1 comment:

  1. अम्बर पर घिरती सघन घन घटाएं
    घनों के घोर से कंपकंपाती ये हवाएं
    विकल होता है ये मन.....
    मन को छू लेने वाली सुंदर कविता...

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