जाने क्यों याद आता है
अम्बर पर घिरती सघन घन घटाएं
घनों के घोर से कंपकंपाती ये हवाएं
विकल होता है ये मन
दामिनी की दमक से उजला ये बदन
जाने क्यों याद आता है !
खिले हुए पुष्प पर मंडराता भंवरा
चिड़ियों का छोटा सा आशियाना
किनारों को छूकर लहरों का आना
जलते दिए की लौ का उठाना
जाने क्यों याद आता है
सूनी मुंडेरों पर उदासी का साया
विरह मन की वेदना
उलझ कर हाथों की हथेलियाँ
बालों का सुलझाना
जाने क्यों याद आता है
अम्बर पर घिरती सघन घन घटाएं
ReplyDeleteघनों के घोर से कंपकंपाती ये हवाएं
विकल होता है ये मन.....
मन को छू लेने वाली सुंदर कविता...