Monday, November 28, 2011

अनीता सक्सेना



पतझड़ और यादें

इस पतझड़ मेरे आंगन में
जितनी यादें आकर बरसीं
उतने पत्ते नहीं झरे !

इस फागुन मेरे आंगन में
टेसू ने पत्ते-पत्ते पर
गेरू रंग के दीप जलाये
कहाँ मिलो तुम मिलन आस में
ढेरों गीत फागुनी गाए
मुझ पर फागुन नहीं चढ़ा !

इस सावन मेरे आंगन में
काले मेघ उड़ा कर लाये
पानी के संग याद तुम्हारी
पानी को तो हवा ले गई
साथ रहे बस स्वप्न तुम्हारे
नैनों से सावन बरसा
मुझ पर सावन नहीं चढ़ा !

सावन -पतझड़ -वसंत-बहारें
हर पल -हर क्षण तुम्हें पुकारे
चंचल मौसम जब भी आये
अपने संग तुमको ले आये
अब के बरस इस जीवन में
एक बरस भी नहीं जुड़ा
बस कुछ सपने, बस कुछ यादें
पल भी ठिठका वहीं खड़ा

एक बरस , बस एक बरस
जीवन था बस एक बरस !!

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