Monday, November 28, 2011

कुलतार कौर कक्कड़






तुम्हें भुलाना

बहुत कठिन है तुम्हें भुलाना
कितनी बार कहा है तुमसे
मुझको याद  अधिक मत आना
बहुत कठिन है तुम्हें भुलाना  !

मधु - मधुरतम तेरी  बातें
प्राणों में रस घोल निरंतर
खिल-खिल जाते पुष्प गुच्छ से
अनुपम छवि में जैसे छवि धर
अपूर्व सुनहले सुन्दरतम तुम
सौन्दर्य  बोध से मत घबराना
बहुत कठिन है तुम्हें भुलाना !

जैसे लहर-लहर सागर में
नर्तन करती फिर खो जाती
लय  हो जाती महाकार में
अपना ही अस्तित्व मिटती
फिर भी नाता महा सिन्धु से
अनजाना  कुछ है पहचाना
बहुत कठिन है तुम्हें भुलाना !

जीवन के पल बिखरे-बिखरे
केवल स्मृतियाँ हैं शेष
एकांत अकेले खोये-खोये
खोजें क्या है यहाँ विशेष
धक-धक धडकन बोल रही है
साँस-साँस में तुम बस जाना
बहुत कठिन है तुम्हें भुलाना  !

मन में नूतन नवल कल्पना
तेरी छवि को और संवारूं
इस पर्वत से , इस घाटी से
उस असीम तक तुम्हें पुकारूँ
पूनम की खिली रजनी में
मिलन का मौसम हो सुहाना !

कितनी बार कहा है तुमसे
मुझको याद  अधिक मत आना

बहुत कठिन है तुम्हें भुलाना !

1 comment:

  1. जैसे लहर-लहर सागर में
    नर्तन करती फिर खो जाती
    लय हो जाती महाकार में
    अपना ही अस्तित्व मिटती
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...सच है ......बहुत कठिन है तुम्हें भुलाना !

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