डॉ.सुशीला कपूर
संस्थापक
हिंदी लेखिका संघ , मध्यप्रदेश , भोपाल
यों ही
यों ही संशय सदा तुम किया न करो
स्नेह गौरव सदा को सुखा जायेगा
रूप अंकित तुम्हारा हृदय बिम्ब में
विश्वासों के जल से निखारो , सखे
यों ही संशय -शिखा जो दिखाते रहे
स्नेह - दर्पण दरारा तो हो जायेगा !
स्नेह - तागा बटा चाह के तन्तु से
विश्वासों का मांझा , लगन रंग से
शंका - चरखी पर यों तानते जो रहे
शत - खंडों में टूटा न जुड़ पायेगा !
प्रेम - प्रतिज्ञा पुजे त्याग के पाप से
औ' पुजापे में सर्वस्व चढ़ाना पड़े
यों ही शंका की छेनी चलते रहे
विश्वासों का मन्दिर ही ढह जायेगा
स्नेह - कोल सरस पदम तन्तु प्रिये
बंधना मन-मतंग सहज न सखे
यों ही संशय - सुरा जो चढाते रहे
स्नेह का संतुलन ही बिगड़ जायेगा !
विश्वासों की यमुना पुलिन पर प्रिये
संगमरमरी - चाहों गढ़ा ताज ये
यों ही संशय प्रदूषण फैलाते रहे
स्नेह का ताज बदरंग हो जायेगा !
मन - चकोरा रमा भूल दूरी प्रिये
चाहत-चांदनी में अंगारे चुगे
यों अकारण उपेक्षा दिखाते रहे
प्रेम - कुकनू सदा को ही जल जायेगा ! ( नर - नारायणी से साभार )