Wednesday, November 16, 2011

कुमकुम गुप्ता






जाने क्यों बच्चे हमें समझा रहे हैं आज - कल
अनुभवी खुद को ही कहला रहे हैं आज - कल !

मांग अपनी सामने रखते हैं शर्तों की तरह
उनके तरीके काम के दहला रहे हैं आज-कल !

उनके सपनों की तहों को जानना चाह जरा
सन्दर्भ बातों का बदल टहला रहे हैं आज-कल !

रोज ही नाराजगी के रंग चेहरे पर पढूं
घाव दे कर भी कहें सहला रहे हैं आज-कल !

उनके कारण पायलों सी जिन्दगी होती बसर
सत्य कहने में हमीं हकला रहे हैं आज-कल !

3 comments:

  1. आज के बच्चों के ऊपर एक सुंदर कविता....सुंदर रचना...!

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  2. बेहद खूबसूरत कविता है यह आपकी आदरणीया कुमकुम जी ।बधाई प्रेषित है।

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  3. बेहद खूबसूरत कविता है यह आपकी आदरणीया कुमकुम जी ।बधाई प्रेषित है।

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